भारतीय राजनीति में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी: लोकतंत्र की सशक्त आवश्यकता

By : Indu Bala

भारत स्वयं को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाने पर गर्व करता है, किंतु यह सत्य भी उतना ही स्पष्ट है कि इस लोकतंत्र की संरचना आज भी अधूरी है। देश की लगभग आधी आबादी का प्रतिनिधित्व राजनीति और सत्ता के केंद्रों में सीमित रहना लोकतांत्रिक मूल्यों पर प्रश्नचिह्न लगाता है। महिलाओं की पर्याप्त भागीदारी के बिना न तो नीति-निर्माण समावेशी हो सकता है और न ही शासन वास्तव में जनोन्मुखी बन सकता है। ऐसे समय में भारतीय राजनीति में अधिक महिलाओं की उपस्थिति केवल सामाजिक न्याय का विषय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय विकास की अनिवार्यता है।

स्वतंत्रता के बाद भारत ने अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है, पर राजनीतिक प्रतिनिधित्व के क्षेत्र में लैंगिक असमानता अब भी बनी हुई है। पंचायतों और नगर निकायों में आरक्षण के माध्यम से महिलाओं को अवसर मिले हैं और इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं। इसके बावजूद संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की संख्या अभी भी संतोषजनक नहीं कही जा सकती। यह स्थिति दर्शाती है कि अवसर मिलने पर महिलाएं प्रभावी नेतृत्व कर सकती हैं, किंतु उन्हें आगे बढ़ने के लिए संस्थागत समर्थन और राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।

महिलाओं की बढ़ती भागीदारी भारतीय राजनीति के स्वरूप को गहराई से बदल सकती है। सत्ता-संघर्ष और कटु टकराव से प्रभावित राजनीति में संवेदनशीलता, संवाद और सहमति का तत्व मजबूत हो सकता है। महिला नेतृत्व प्रायः शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, स्वच्छता, सामाजिक सुरक्षा और महिला-बाल कल्याण जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देता है, जो सीधे समाज की बुनियादी आवश्यकताओं से जुड़े होते हैं। इससे राजनीति का केंद्र आम नागरिक का जीवन और उसकी समस्याएं बन सकती हैं।

शासन व्यवस्था पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। महिलाओं की भागीदारी से निर्णय प्रक्रिया अधिक संतुलित, मानवीय और दीर्घकालिक दृष्टि से प्रेरित होती है। तात्कालिक राजनीतिक लाभ के स्थान पर स्थायी विकास और सामाजिक समरसता पर जोर बढ़ता है। प्रशासनिक पारदर्शिता, जवाबदेही और सेवा-भाव को भी इससे बल मिलता है, जिससे शासन के प्रति जनता का विश्वास सुदृढ़ होता है।

जमीनी स्तर पर महिला नेतृत्व के प्रभाव को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। अनेक अध्ययनों और व्यावहारिक अनुभवों से यह स्पष्ट हुआ है कि जहां महिलाएं नेतृत्व की भूमिका में होती हैं, वहां स्कूलों में नामांकन बढ़ता है, स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सुधरती है, स्वच्छता और पेयजल जैसी मूलभूत सुविधाओं पर अधिक ध्यान दिया जाता है और कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन अधिक प्रभावी होता है। इसके साथ ही राजनीति में महिलाओं की दृश्यता समाज की अन्य महिलाओं और किशोरियों के लिए प्रेरणा बनती है, जिससे समानता और आत्मनिर्भरता की भावना को बल मिलता है।

यह स्वीकार करना आवश्यक है कि महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण की राह में अनेक चुनौतियाँ मौजूद हैं। पितृसत्तात्मक सोच, राजनीतिक हिंसा, संसाधनों की कमी और दलों के भीतर सीमित अवसर उनकी भागीदारी को बाधित करते हैं। इन बाधाओं को दूर करने के लिए महिला आरक्षण जैसे संवैधानिक प्रावधानों का प्रभावी क्रियान्वयन, राजनीतिक दलों द्वारा महिलाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व और नेतृत्व के अवसर देना तथा प्रशिक्षण और क्षमता-विकास पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है।

अंततः भारतीय राजनीति में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी किसी वर्ग विशेष के हित की बात नहीं, बल्कि लोकतंत्र की मजबूती और राष्ट्र के समग्र विकास का प्रश्न है। जब महिलाएं नीति निर्माण और शासन के केंद्र में होंगी, तभी लोकतंत्र अधिक समावेशी, संवेदनशील और प्रभावी बन सकेगा। एक सशक्त भारत की परिकल्पना तभी साकार होगी, जब राजनीति में महिलाओं की आवाज़ केवल सुनी ही नहीं जाएगी, बल्कि उसे निर्णायक भूमिका भी दी जाएगी।

Author: Indu Bala.